नेहा सिंह राठौर को हाई कोर्ट से झटका, सोशल मीडिया पोस्ट पर दर्ज FIR रद्द करने की याचिका खारिज

लोकप्रिय लोक गायिका नेहा सिंह राठौर, जो अपने बेबाक अंदाज़ और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर मुखर राय रखने के लिए जानी जाती हैं, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहने वाली नेहा अक्सर सरकार से भी तीखे सवाल करती रही हैं। अब उनके एक पुराने पोस्ट को लेकर उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नेहा की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार चुनाव और हिंदू-मुस्लिम राजनीति से जुड़े अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 19 सितंबर 2025 को सुनाए गए फैसले में न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने नेहा को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वह 26 सितंबर को सुबह 11 बजे संबंधित जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित हों और पुलिस रिपोर्ट दाखिल होने तक जांच में सहयोग करें। कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ दर्ज आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं और इनकी जांच होना जरूरी है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि नेहा के ट्वीट्स पहलगाम आतंकी हमले के ठीक बाद किए गए थे, इसलिए उनके समय और संदर्भ को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

कोर्ट के आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि याचिकाकर्ता को मामले की जांच में शामिल होना ही होगा क्योंकि एफआईआर अभी लंबित है। अदालत का कहना है कि जब तक पुलिस रिपोर्ट दाखिल नहीं हो जाती, नेहा को पूरी जांच प्रक्रिया में सहयोग करना होगा।

गौरतलब है कि यह एफआईआर अप्रैल 2025 में लखनऊ के हजरतगंज थाने में दर्ज की गई थी। आरोप है कि नेहा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि “पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी बिहार इसलिए आए ताकि पाकिस्तान को धमका सकें और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट बटोर सकें।” उन्होंने सरकार पर यह भी आरोप लगाया था कि बीजेपी आतंकियों को ढूंढने और अपनी गलतियों को स्वीकारने के बजाय देश को युद्ध की ओर धकेल रही है।

इस मामले को खारिज करने की मांग करते हुए नेहा के वकील ने तर्क दिया कि उनके पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है, और इस अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता।

हालांकि, अदालत ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि नेहा के पोस्ट में प्रधानमंत्री का अपमानजनक तरीके से उल्लेख किया गया है, और उन्होंने भाजपा पर निजी स्वार्थ के लिए पाकिस्तान के साथ युद्ध भड़काने का आरोप लगाया है, जो कि बेहद गंभीर है और इस पर जांच जरूरी है।

इस फैसले के बाद साफ है कि नेहा सिंह राठौर को अब कानूनी प्रक्रिया का सामना करना होगा, और उन्हें जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करना पड़ेगा। मामला अब सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट का नहीं रहा, बल्कि यह सवाल बन चुका है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा कहां तक होनी चाहिए और क्या किसी लोकतांत्रिक देश में संवैधानिक अधिकारों के नाम पर प्रधानमंत्री या सरकार पर इस तरह के आरोप लगाए जा सकते हैं।

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