पत्नी के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी की असली मिल्कियत अब तय होगी पैसे के स्रोत से – दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

जमीन या प्रॉपर्टी को लेकर टैक्स बचाने या पारिवारिक कारणों से लोग अकसर अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदते हैं। लेकिन अब दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर एक ऐतिहासिक और साफ-साफ फैसला सुनाया है, जिससे लाखों परिवारों को भविष्य में कानूनी स्पष्टता और राहत मिलेगी।

अदालत ने कहा है कि संपत्ति का असली मालिक वही व्यक्ति माना जाएगा जिसने उसकी खरीद के लिए भुगतान किया है, भले ही रजिस्ट्री किसी और के नाम क्यों न हो। यह फैसला उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो पत्नी के नाम पर संपत्ति तो खरीदते हैं, लेकिन पैसों की व्यवस्था खुद करते हैं।

रजिस्ट्री नहीं, भुगतान तय करेगा मालिकाना हक

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अगर किसी व्यक्ति ने अपनी वैध कमाई से पत्नी के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदी है, और यह साबित कर सकता है कि भुगतान उसी ने किया है — तो रजिस्ट्री में चाहे जिसका नाम हो, असली मालिक वही होगा जिसने भुगतान किया।

🔍 उदाहरण के तौर पर, अगर पति के बैंक स्टेटमेंट, सैलरी स्लिप या आयकर रिटर्न से यह स्पष्ट होता है कि पैसे उसी ने दिए हैं, तो संपत्ति पर कानूनी हक भी उसी का होगा।

मामला क्या था?

यह निर्णय एक वास्तविक केस पर आधारित है जिसमें एक व्यक्ति ने दिल्ली और गुड़गांव में दो प्रॉपर्टी अपनी पत्नी के नाम खरीदी थी। हालांकि, रजिस्ट्री में नाम पत्नी का था, लेकिन भुगतान पति ने किया था। जब रिश्तों में दरार आई और मामला अदालत पहुंचा, तो निचली अदालत ने पति के दावे को खारिज कर दिया।

लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसले को पलटते हुए कहा कि यह बेनामी संपत्ति कानून के दायरे में नहीं आता क्योंकि भुगतान का स्रोत साफ और ट्रैसेबल है।

बेनामी संपत्ति कानून: क्या कहता है नियम?

भारत में बेनामी संपत्ति अधिनियम, 1988, और उसके 2016 के संशोधन के अनुसार:

  • यदि पति अपनी साफ-सुथरी कमाई से पत्नी के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदता है, तो वह बेनामी नहीं मानी जाएगी।
  • लेकिन वास्तविक मालिक वही होगा जिसने भुगतान किया हो — यानी वित्तीय योगदान से मालिकाना हक तय होगा

इस कानून का मकसद पारिवारिक लेन-देन में पारदर्शिता लाना है, न कि सही तरीके से की गई संपत्ति खरीद को दंडित करना।

काले धन पर सख्ती: अदालत की चेतावनी

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी सख्त चेतावनी दी कि:

  • यह राहत केवल उन लोगों को मिलेगी जिनकी आय वैध और ट्रैक की जा सकती है
  • अगर कोई काले धन को सफेद करने के लिए पत्नी या परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर संपत्ति खरीदता है, तो कानून सख्ती से कार्रवाई करेगा

📢 कोर्ट ने कहा: “हर लेन-देन में दस्तावेजी सबूत जरूरी हैं। कोई भी लेन-देन संदिग्ध पाए जाने पर कानून से नहीं बच सकता।”

क्या सावधानियां रखें प्रॉपर्टी खरीदते समय?

अगर आप अपनी पत्नी या किसी अन्य के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदने की सोच रहे हैं, तो ये सावधानियां ज़रूर बरतें:

  1. पैसे का स्रोत पूरी तरह वैध और ट्रैसेबल होना चाहिए
    (बैंक स्टेटमेंट, सैलरी स्लिप, ITR तैयार रखें)
  2. एक लिखित समझौता बनवाएं
    जिसमें यह स्पष्ट हो कि पैसा किसने दिया है और वास्तविक मालिक कौन है।
  3. टैक्स नियमों और बेनामी कानून की जानकारी रखें
    ताकि बाद में कोई कानूनी विवाद न हो।
  4. परिवार के साथ पारदर्शिता रखें
    ताकि रिश्तों में गलतफहमियां न पैदा हों।

क्या घबराने की जरूरत है?

बिलकुल नहीं, अगर आपने सब कुछ सही तरीके से किया है।
यह फैसला उन ईमानदार लोगों के लिए राहत की खबर है जो अपनी मेहनत की कमाई से परिवार के लिए कुछ बनाना चाहते हैं। बस यह सुनिश्चित करें कि:

  • आपके पास सभी जरूरी दस्तावेज हों
  • पैसे का हिसाब साफ हो
  • और रजिस्ट्री भले किसी और के नाम हो, पैसा किसका है — यह साबित हो सके

निष्कर्ष: एक ऐतिहासिक फैसला, जो बनाएगा संपत्ति विवादों में पारदर्शिता

दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से भी दूरदर्शी है। अब सिर्फ कागज़ों में नाम होने से कोई संपत्ति का मालिक नहीं कहलाएगा — असली अधिकार उसी का होगा जिसने भुगतान किया है।

यह फैसला न केवल पति-पत्नी के बीच के विवादों को कम करेगा, बल्कि समाज में बेनामी और काले धन से जुड़ी प्रवृत्तियों पर भी लगाम लगाएगा।

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