वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने केंद्र सरकार द्वारा जारी उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उनसे और अन्य यूट्यूब पत्रकारों से अदानी ग्रुप से संबंधित वीडियो हटाने को कहा गया है। रवीश कुमार ने इस आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और इसे “पत्रकारों को चुप कराने की कोशिश” करार दिया है।
यह मामला सोमवार, 23 सितंबर 2025 को जस्टिस सचिन दत्ता की अदालत में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
⚖️ पृष्ठभूमि: मामला कैसे शुरू हुआ?
- 6 सितंबर 2025: दिल्ली की रोहिणी अदालत ने अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड की याचिका पर आदेश जारी किया, जिसमें कई पत्रकारों और अज्ञात प्रतिवादियों को अदानी ग्रुप के खिलाफ “अपमानजनक सामग्री” प्रकाशित करने से रोकने को कहा गया।
- 16 सितंबर 2025: इस आदेश के आधार पर केंद्र सरकार ने रवीश कुमार सहित अन्य यूट्यूबर्स और मीडिया संस्थानों को नोटिस भेजा और “उचित कार्रवाई” करने के लिए कहा — अर्थात् उनके द्वारा प्रकाशित सामग्री को हटाया जाए।
- 18 सितंबर 2025: एक अपीलीय अदालत ने इस मामले में चार पत्रकारों को आंशिक राहत दी, और निचली अदालत का आदेश आंशिक रूप से रद्द कर दिया।
🗣️ रवीश कुमार की प्रतिक्रिया: “यह चुप कराने की रणनीति है”
रवीश कुमार ने इस पूरे घटनाक्रम को पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। उनका कहना है कि:
“मानहानि के मुकदमों और सरकारी आदेशों के जरिए पत्रकारों को डराने और चुप कराने की कोशिश हो रही है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।”
रवीश का यह कदम न केवल व्यक्तिगत प्रतिरोध है, बल्कि एक बड़ा संदेश भी है उन पत्रकारों के लिए, जो सत्ता और कॉरपोरेट गठजोड़ के खिलाफ सवाल उठाते हैं।
🔎 क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?
यह विवाद सिर्फ रवीश कुमार या अदानी ग्रुप तक सीमित नहीं है। यह सवाल उठाता है:
- क्या अब कॉरपोरेट की आलोचना भी ‘मानहानि’ मानी जाएगी?
- क्या सरकार स्वतंत्र पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए अदालत के आदेशों का सहारा ले रही है?
- क्या अब डिजिटल मीडिया भी मुख्यधारा मीडिया की तरह नियंत्रण के दायरे में आ चुका है?
इस मामले ने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की भूमिका और न्यायिक प्रक्रिया के दायरे को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है।
🧾 सरकार का रुख क्या है?
सरकार की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई विस्तृत बयान नहीं आया है, लेकिन 16 सितंबर को जारी लेटर में यह कहा गया कि सभी संबंधितों को निचली अदालत के आदेश के अनुसार “उचित कार्रवाई” करनी चाहिए। इसका सीधा अर्थ यह निकाला गया कि सभी को अदानी समूह के खिलाफ प्रसारित की गई सामग्री को हटाना होगा।
⚖️ आगे क्या हो सकता है?
दिल्ली हाईकोर्ट की सुनवाई अब इस बात पर प्रकाश डालेगी कि:
- क्या सरकारी आदेश न्यायसंगत था?
- क्या पत्रकारों की स्वतंत्रता का हनन हुआ है?
- क्या मानहानि का दायरा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से टकरा रहा है?
इस फैसले का असर सिर्फ रवीश कुमार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारत में डिजिटल पत्रकारिता की स्वतंत्रता के भविष्य को भी तय करेगा।
🧠 निष्कर्ष: क्या लोकतंत्र की परीक्षा का समय है?
रवीश कुमार का यह कानूनी कदम भारत में “सेंसरशिप बनाम पत्रकारिता” की बहस को और तेज़ कर देगा। जहां एक ओर अदानी समूह अपने व्यवसायिक हितों की सुरक्षा की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर पत्रकार इसे जनता के अधिकारों पर हमला मान रहे हैं।
यदि कोर्ट इस आदेश को असंवैधानिक करार देती है, तो यह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक ऐतिहासिक फैसला बन सकता है। वहीं, अगर कोर्ट सरकारी आदेश को सही ठहराती है, तो पत्रकारों और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
ये पत्रकारिता के नाम ब्लैकमेल गेम खेल रहे है , आज़ादी के नाम मानहानि क्यो नहीं कर रहे अगर किसी के ख़िलाफ़ कुछ संदेहास्पद है तो उसके लिए पुलिस और अदालत है ! आप पुलिस का कम भी अदालत जज काम भी और सरकार का काम कम भी करोगे ! सिर्फ़ इसलिए की किसी षड्यंत्र कड़ी मूर्ख शैतान बुद्धि ने ये फैला दिया की पत्रकार मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है , अरे सबूत दे और पुलिस में कंप्लेंट दे ! प्रोपेगंडा ट्रायल करके दूसरे की मान हानि कर रहा है जनता को गुमराह कर रहा है