सोनम वांगचुक को मिल रही विदेशी फंडिंग? जाने पूरा मामला

सोनम वांगचुक को मिल रही विदेशी फंडिंग? जाने पूरा मामला: लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर बीते पांच वर्षों से चल रहा आंदोलन बुधवार को हिंसक हो गया। इस अप्रत्याशित हिंसा में चार लोगों की जान चली गई और करीब एक दर्जन वाहन फूंक दिए गए या क्षतिग्रस्त कर दिए गए। स्थिति पर काबू पाने के लिए प्रशासन को इलाके में निषेधाज्ञा लागू करनी पड़ी। लद्दाख जैसे शांत और संयमित माने जाने वाले क्षेत्र में हिंसा और आगजनी की तस्वीरें और वीडियो सामने आना पूरे देश को हैरान कर रहा है।

इस हिंसा को यूं तो अचानक बताया जा रहा है, लेकिन बीते कुछ समय से लद्दाख में स्थानीय बनाम बाहरी जैसे मुद्दों को लगातार तूल दिया जा रहा था। जानकारों का मानना है कि यह हिंसा स्वतःस्फूर्त नहीं, बल्कि योजनाबद्ध रूप से भड़काई गई है। खासकर तब जब केंद्र और लेह अपेक्स बॉडी (LAB) के बीच राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची को लेकर अगले महीने बैठक प्रस्तावित थी। केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से काम कर रही थी और 25-26 सितंबर को बैठक बुलाने की संभावना भी व्यक्त की गई थी।

केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख के सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद कई अहम फैसले लिए गए थे। अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% कर दिया गया है। पंचायतों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण दिया गया है। बोटी और पर्गी भाषाओं को आधिकारिक मान्यता दी गई है। चार नए जिलों के गठन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और 1800 पदों पर भर्ती भी शुरू की गई है। साथ ही, अलग लोक सेवा आयोग के गठन पर भी विचार चल रहा है। इन तमाम प्रयासों के बावजूद आंदोलन का हिंसक होना कई सवाल खड़े करता है।

इस पूरे घटनाक्रम में पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक और कांग्रेस के कुछ स्थानीय नेताओं की भूमिका पर गंभीर संदेह जताया जा रहा है। एक कांग्रेस काउंसलर का वीडियो सामने आया है, जिसमें वह भड़काऊ भाषण देते हुए और प्रदर्शनकारियों की भीड़ में सबसे आगे नजर आ रहे हैं। सोनम वांगचुक पर भी आरोप हैं कि वे अब पर्यावरण और समाजसेवा की आड़ में सक्रिय रूप से राजनीति कर रहे हैं। उनकी एनजीओ को मिलने वाली विदेशी फंडिंग, सरकार से कौड़ियों के दाम पर ली गई भूमि और विश्वविद्यालय परियोजना में अनियमितताओं को लेकर पहले भी सवाल उठ चुके हैं। हाल ही में सरकार ने वह भूमि वापस भी ले ली थी। इन तमाम मुद्दों की जांच भी जारी है, जिससे वांगचुक की छवि पर असर पड़ा है।

सबसे गंभीर आरोप यह है कि सोनम वांगचुक ने विवादास्पद लेखिका अरुंधति रॉय को आंदोलन में समर्थन देने के लिए लेह आमंत्रित किया था। अरुंधति रॉय की कश्मीर और भारत विरोधी टिप्पणियां पहले भी विवादों में रही हैं। इससे यह आशंका और गहराती है कि लद्दाख आंदोलन को देशविरोधी एजेंडे से जोड़ा जा रहा है। सोनम वांगचुक के हालिया बयानों और वीडियो में अरब स्प्रिंग और नेपाल के जेनरेशन Z जैसे आंदोलनों की खुलेआम प्रशंसा की गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि युवाओं को संगठित कर एक बड़ा जनविरोध खड़ा करने की कोशिश की गई।

हिंसा के बाद वांगचुक ने मीडिया से कहा कि आंदोलनकारी देश को शर्मिंदा नहीं करना चाहते और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन जारी रहेगा। लेकिन जब लेह में हिंसा हो रही थी, उस समय वह चुपचाप अनशन समाप्त कर अपने गांव लौट गए। यह रवैया कई लोगों के लिए हैरानी का विषय बना रहा। वहीं, श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद अजीम मट्टू ने कहा कि हिंसा किसी भी न्यायसंगत आंदोलन को कमजोर कर देती है और इससे सिर्फ निराशा ही मिलती है। उन्होंने शांतिपूर्ण संघर्ष को ही एकमात्र सही रास्ता बताया।

लद्दाख में भड़की यह हिंसा सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि यह बताती है कि किस तरह बाहरी हस्तक्षेप और आंतरिक राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं संवेदनशील क्षेत्रों में अस्थिरता फैला सकती हैं। जब संवाद और समाधान की दिशा में केंद्र और स्थानीय नेतृत्व प्रयासरत थे, तब यह हिंसा लद्दाख के भविष्य को खतरे में डालने जैसा कदम साबित हो सकती है। अब सबसे जरूरी है कि दोषियों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए और लद्दाख को पुनः शांति और विकास के रास्ते पर लाया जाए।

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