नेपाल में हालिया हिंसक प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार गिर गई है। बीते सप्ताह हुए उग्र विरोध में लगभग 50 लोगों की मौत, सैकड़ों इमारतों को नुकसान और यहां तक कि संसद और सुप्रीम कोर्ट को आग के हवाले कर दिया गया। प्रदर्शन की शुरुआत भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ हुई थी, लेकिन इसके पीछे की परतें कहीं अधिक गहरी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
सत्ता परिवर्तन की साजिश?
मार्च में द संडे गार्जियन की एक रिपोर्ट ने दावा किया था कि नेपाल में सत्ता परिवर्तन की कोशिशें चल रही हैं। रिपोर्ट में कुछ नेपाली नेताओं के नाम भी सामने आए, जिनपर इस प्रक्रिया में शामिल होने के आरोप लगे।
रिपोर्ट के अनुसार, USAID और अन्य अमेरिकी लोकतांत्रिक संगठनों की आंतरिक संचार सामग्री और कार्यक्रम आउटपुट से यह संकेत मिला कि अमेरिका ने नेपाल में 900 मिलियन डॉलर से अधिक की सहायता दी है। यह फंड मुख्यतः शासन, मीडिया, नागरिक समाज और चुनावी गतिविधियों में लगाया गया।
अमेरिकी फंडिंग का जाल
- USAID ने मई 2022 में नेपाल के वित्त मंत्रालय के साथ 402.7 मिलियन डॉलर के डेवलपमेंट ऑब्जेक्टिव एग्रीमेंट (DOAG) पर हस्ताक्षर किए।
- MCC समझौता (500 मिलियन डॉलर) 2017 में किया गया था, जिसे फरवरी 2022 में संसदीय विवादों के बाद मंजूरी मिली।
- 2025 की शुरुआत तक MCC के केवल 43.1 मिलियन डॉलर वितरित हुए थे, लेकिन समझौते की अवधि बढ़ा दी गई।
इन दोनों पैकेजों को मिलाकर कुल सहायता 900 मिलियन डॉलर से अधिक हो जाती है। इसमें:
- 37 मिलियन डॉलर नागरिक समाज और मीडिया के लिए
- 35 मिलियन डॉलर किशोर प्रजनन स्वास्थ्य परियोजना के लिए
- 8 मिलियन डॉलर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए
- $500,000 का प्रोजेक्ट “डेमोक्रेसी रिसोर्स सेंटर नेपाल” भी शामिल है
आलोचकों का मानना है कि ये कार्यक्रम दिखने में विकासपरक हैं, लेकिन असल में राजनीतिक प्रभाव और नैरेटिव निर्माण के औजार हैं।
NGO के ज़रिए असंतोष की आग
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि NDI, IRI और IFES जैसी संस्थाओं ने नेपाल में कई गतिविधियाँ चलाईं:
- NDI ने संघीय ढांचे, दलित अधिकार और जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्ट्स प्रकाशित कीं
- IRI ने राष्ट्रीय सर्वे के ज़रिए युवाओं में असंतोष और नई राजनीतिक इच्छाओं को उजागर किया
- IFES ने चुनावी तकनीकी सहयोग और मतदाता जागरूकता अभियान चलाए
हालांकि इनका उद्देश्य लोकतंत्र को मजबूत करना बताया गया, लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये कार्यक्रम अमेरिकी एजेंडा को नेपाल के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में प्रवेश दिलाने का माध्यम बने।
काठमांडू की सड़कों पर अमेरिकी ट्रेनिंग के साए
आज जो युवा आंदोलनकारी काठमांडू की सड़कों पर हैं, वे वही हैं जो कुछ साल पहले अमेरिकी फंडिंग से चलने वाले ट्रेनिंग और एक्टिविज्म प्रोग्राम्स का हिस्सा रहे। यह संयोग नहीं बल्कि एक रणनीतिक निर्माण प्रतीत होता है, जो नेपाल की संप्रभुता और राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।